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इरफ़ान खाँ की जिंदगी से जुड़ी खास बातें, जानिए क्रिकेट के मैदान से बॉलीवुड में कैसे आ गए थे इरफान

नवाबों के खानदान का एक लड़का जिसको पिता की इस आदत से था ऐतराज

दोस्तों 29 अप्रैल 2020 की मॉर्निंग इरफान की मृत्यु की खबर ने पूरे संसार को हैरान कर दिया था। वे फ़िल्मी दुनिया के एक चमकते सितारे थे परंतु उन्होंने सितारा बनने से पहले लाइफ़ में किन मुसीबतों और समस्याओं का सामना किया। हमने इस आर्टिकल में इसी के बारे में लिखा है।

शिकार करने के थे विरोधी

irfan khan life story
image credit: twitter@irrfank
वो 70th Decade का राजस्थान था। नवाबियत समाप्त हुए भी एक जमाना हो चुका था था। टोंक डिस्ट्रिक्ट के नवाबों के खानदान से पुराना संपर्क रखने वाले जमींदार यासीन अली खाँ जयपुर आ गए थे। यद्यपि उनके पास पुरखों की कोई जमीन नहीं थी मगर खून में नवाबों की शान-शौकत जीवित थी। पिंक सिटी जयपुर में टायर की बड़ी दुकान चलाने वाले साहबजादे यासीन अली खाँ को शिकार करने का बहुत शौक था। जयपुर के आस-पास उन दिनों बहुत वन थे। यासीन अली खाँ उन वनों में शिकार करने के लिए जाया करते थे एवं स्वयं के साथ अपने पुत्र को भी ले जाते। दस-बारह वर्ष का उनका पुत्र उनके साथ में हो लेता। उसे घने अंधेरे वन में ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर गन लेकर घूमते हुए रात्रि व्यतीत करना अच्छा लगता था। मगर हां, एनिमल्स पर गोली चलाना उसे बिल्कुल पसंद नहीं था। वह हाथ में गन लिए जीप के अंदर बैठा रहता परन्तु जब निशाने पर कोई एनिमल होता एवं खां साहब कहते, "चलाओ, गोली चलाओ" तो ट्रिगर उसे दबा ही नहीं मिलता था। वह लड़का उस एनिमल की बनावट एवं उसकी सुंदरता देखने लगता। उस लड़के का नेम था साहबज़ादे इरफान अली खाँ।

पतंगबाज़ी और क्रिकेट का था शौक

साहबज़ादे इरफान अली खाँ को शिकार से ज्यादा पतंगबाजी एवं क्रिकेट में इंट्रेस्ट था। जयपुर के उस भवन की छोटी सी छत पर वो रंग बिरंगी पतंगे उड़ाया करते। क्रिकेट में इंट्रेस्ट इस कदर था कि विद्यालय से लौटते ही, बस्ता एक साइड फेंक कर खेलने चले जाते। जयपुर की गंगोरी रोड पर बने चौगान स्टेडियम में घण्टो क्रिकेट चलता एवं कभी टाइम कम हुआ तो अपने परम मित्र सतीश के साथ घर के पड़ोस वाले खाली पड़े फील्ड में स्टंप गाड़कर पारियां स्टार्ट हो जातीं। इरफ़ान वैसे तो ऑलराउंडर थे मगर उन्हें बल्लेबाजी ज्यादा पसंद थी।

अबीश मैथ्यू को दिए एक Web-Interview में उन्होंने बोला था,"मेरी टीम के कप्तान को मेरी गेंदबाजी पंसद थी तो उसने मुझे गेंदबाज बना दिया। पता नहीं, वो मुझसे कहता था गेंद फेंको एवं मैं फेंकता था एवं पता नहीं किस प्रकार से एक-आध विकेट मिल  भी जाता था। मगर मुझे शुरू से बल्लेबाजी पसंद थी" उस आयु तक इरफान खाँ फिक्स कर चुके थे कि उनको क्रिकेटर ही बनना है। 

जिस इरफान को आज दुनिया अदाकारी के मकबूल सितारे के रूप में जानती हैं, मुमकिन है वह इरफान खाँ क्रिकेट के वर्ल्ड का जाना माना नेम होता यदि उस दोपहर, जब सी. के. नायडू क्रिकेट ट्रॉफी के लिए उनका चयन हो गया था तथा उन्हें फीस के लिए रुपए जमा करने थे, तब रुपयों का इन्तजाम हो जाता। सी. के, नायडू क्रिकेट ट्रॉफी क्रिकेट में महत्वपूर्ण मानी जाती है। इरफान खाँ का चयन होने का अर्थ था कि उनमें क्रिकेट की प्रतिभा थी। मगर घर वालों ने क्रिकेट में इरफान खाँ की रुचि को बिल्कुल भी नहीं सराहा। एक इंटरव्यूह में इरफान खाँ ने बोला था,"यदि उस शाम मेरे पास तीन हजार पांच सौ रुपये होते, तो संभव है कि आज मैं कोई और ही इरफान होता।"

पढ़ाई के दौरान लगा एक्टिंग का शौक

क्रिकेट छोड़ने के उपरांत इरफान की अम्मी बेग़म खाँ, जोकि टोंक के एक हकीमी घराने से थीं, उन्होंने इरफान खाँ से स्नातक करने को कहा। इरफान खाँ की अम्मी का जिन्दगी के प्रति नजरिया काफी सादा था। वे बोलती थीं कि काफी बड़े ड्रीम्स नहीं देखने चाहिए। केवल इतना पैसा कमाओ कि इज्जत से गुजारा हो पाए तथा वो कार्य करो, जिसकी खातिर अपना परिवार एवं अपने लोगों को न त्यागना पड़े। उनके एक भाई, मतलब इरफान खाँ के मामू किसी टाइम बंबई आए थे मगर न तो उन्हें बंबई में सफलता मिली एवं न वो कभी वापस लौट कर आए। हो सकता है यही बात थी कि इरफान की अम्मी के मस्तिष्क में बंबई के प्रति पहले ही एक विशेष तरह का भय था। वे तो यह चाहती थीं कि इरफान उनके नाना की हक़ीमी परम्परा आगे लेकर जाए। मगर इरफान खाँ की आंखें तो ड्रीम देखना सीख चुकी थीं। क्रिकेट न सही, कुछ अलग सही। 

स्नातक के वक्त ही इरफान खाँ को अभिनय का शौक लगा। उनकी भेंट जयपुर में कुछ थियेटर वाले व्यक्तियों से हुई। ये अलग अलग कॉलेजों के कुछ ब्वॉयज का ग्रुप था जो अलग अलग जगहों पर हीर रांझा एवं लैला मजनूं जैसे नाटक करा करते थे। ये दुनिया इरफान खाँ के लिए नई एवं बहुत चमकीली भी। क्रिकेट के जैसे यहां भी तुरंत तालियां मिलती थीं। हर एक अच्छे डायलॉग पर, अच्छी एक्टिंग पर वाह-वाही प्राप्त होती। स्टेज पर आते ही व्यक्ति अपने करैक्टर की जिंदगी जीता था। एक अलग एवं जबरदस्त दुनिया थी वो। इरफान खाँ ने ठान लिया कि अब जो कुछ भी करना है इसी में ही करना है। घर के लोगों को खबर लगी थी तो इरफान खाँ के स्नातक के सब्जेक्ट बदल कर, भारी-भरकम सब्जेक्ट दिला दिए गए जिससे कि पढ़ाई से टाइम ही न मिले। 

इरफान ने एक इंटरव्यूह में बोला था, "अब मुझे महसूस होता है कि पढ़ाई से मुझे काफी सारी चीज़ों की समझ मिली अन्यथा मैं हो सकता है इस प्रकार से अभिनय भी नहीं कर पाता। स्नातक के दिनों में मैंने अभिनय की तरफ बराबर से ध्यान देंना स्टार्ट किया। सबसे पहले मैं कुछ नए अभिनेताओं के साथ अभिनय सीखने का प्रयास करता था। इत्तेफाक़ से मेरी भेंट National School Of Drama से जुड़े एक व्यक्ति से हो गयी। मैं उनके साथ में हो लिया एवं स्टूडेंट्स् के साथ कॉलेज के कॉरिडोर में, कभी क्लास में एवं यहां तक की कैंटीन में भी उनको देखकर लर्न करने का प्रयास करता था "

इसके घटना के बाद बादल गई इरफ़ान की लाइफ

कोशिशें रंग लेकर आई एवं वर्ष 1984 में इरफान जब मास्टर ऑफ आर्ट्स कर रहे थे उन्हें National School Of Drama, Delhi से अभिनय के लिए Scholarship मिली। वो दिन इरफान खाँ की जिंदगी के लिए मील का पत्थर सिद्ध हुआ। वो दिल्ली आए एवं फिर उनकी अदाकारी का लोहा बड़े बड़े एक्टर्स ने माना। बंबई पहुंचे तो थोड़े दिन के स्ट्रगल के उपरांत उन्हें छोटे पर्दे पर वर्क मिलना चालू हो गया। चाणक्य, 'भारत एक खोज', सारा जहां हमारा, 'बनेगी अपनी बात' एवं चंद्रकांता में किरदार मिले। इरफान को मीरा नायर की फिल्म सलाम बांबे में भी छोटी सी एक्टिंग मिली मगर एडिट के समय वो भाग कट गया।

इन मूवीज में काम के बाद हुए फ़ेमस

वर्ष 1990 में उन्हें तपन सिन्हा द्वारा डायरेक्टेड मूवी 'एक डॉक्टर की मौत' में' बड़ी भूमिका अदा करने को प्राप्त हुई। पंकज कपूर की जबरदस्त अदाकारी से सजी इस फिल्म को सबसे बेस्ट फीचर मूवी और सबसे बेस्ट डायरेक्शन के लिए नेशनल फिल्म अवार्ड से सम्मान दिया गया। इरफान इस मूवी के उपरांत निर्माताओं-निर्देशकों की नजर में आ गए। एवं इसके पश्चात उन्होंने कभी पीछे पलटकर नहीं देखा। रोग, नेमसेक, चरस, हासिल, न्यूयार्क, लंचबॉक्स जैसी मूवीज से बॉलीवुड के सबसे चमकीले सितारे कहे जाने लगे। इरफ़ान के साथ हासिल एवं चरस जैसी मूवीज बना चुके डायरेक्टर तिगमांशू धूलिया बोलते हैं, "इरफ़ान केवल हिंदी फिल्म जगत के नहीं अपितु दुनिया भर के सबसे शानदार अभिनेता हैं" 

ऐसे शुरू हुई इरफ़ान की बीमारी 

वर्ष 2017 ने इरफान की जिंदगी को चेंज करके रख दिया जब एक फिल्म की शूटिंग के समय उन्हें तेज सिर दर्द हुआ। शुरुआत के इलाज के उपरांत वो लंदन चले गए। जहां पता लगा कि उन्हें न्यूरोइनडोकरीन ट्यूमर है। लम्बे उपचार के उपरांत वे लास्ट ईयर दो अप्रैल को इंडिया लौटे। एवं उस दौरान वे निरोगी लग रहे थे। छूटी हुई मूवीज की प्रिपरेशन भी स्टार्ट हो गयी थी।

लेकिन इस बार इरफान पुन: बीमार हुए। 53 वर्ष के इस अभिनेता को मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया। डॉक्टरों के अनुसार उन्हें कोलन इंफेक्शन था जोकि पाचन तन्त्र से संबंधित एक इंफेक्शन होता है। इरफ़ान खाँ के प्रवक्ता ने सोशल-मीडिया पर लिखा, "हां यह सत्य है कि इरफान मुंबई के कोकिलाबेन हॉस्पिटल के आईसीयू में एडमिट हैं। हम लोग बताना चाहते हैं कि वे डॉक्टरों की देख-रेख में हैं। वो बीमारी से मजबूती एवं हिम्मत से लड़ रहे हैं एवं हमें आशा है कि चाहने वालों की दुआओं एवं मजबूत इच्छाशक्ति के बल पर वो शीघ्र ही सही हो जाएंगे"

डॉक्टरों के अनुसार उनके अंदर मर्ज से लड़ने की काबिले-तारीफ हिम्मत थी। वो इस बीमारी का अपनी सारी ताकत लगाकर सामना कर रहे थे मगर अंतत: न्यूरोइनडोकरीन ट्यूमर नामक इस रेयर डिसीज से हार गए। 29 अप्रैल की मॉर्निंग इरफान की मृत्यु की खबर ने पूरे संसार को हैरान कर दिया। उस दिन मंगलवार को देर रात्रि तक उनके वेंटिलेटर पर होने की अफवाहें सोशल मीडिया पर गर्म थीं, जिसको डॉक्टरों ने अनुचित बताया। मेडिकल स्टाफ ने ट्वीट करके बोला था कि इरफान खाँ वेंटिलेटर पर नहीं हैं, मगर वे मर्ज से जूझ रहे हैं। चाहने वालों से दुवाएं करने के लिए बोला गया था मगर सुबह होते-होते ये क्लीयर हो गया कि बहुत कोशिशों के बाद भी इरफ़ान खाँ को नहीं बचाया जा सका। कुछ दिन पहले कोविड-19 की जागरुकता के लिए एक दिन का व्रत करने का ऐलान करने वाले इरफान अकस्मात दुनिया छोड़ गए। उनके जाने से बॉलीवुड में एक्टिंग का एक जबरदस्त चैप्टर समाप्त हो गया। 

इरफान खाँ ने स्वयं की हालिया फिल्म English Medium के प्रमोशन के समय स्वयं के चाहने वालों को एक Video बनाया था। जिसमें उन्होंने बोला था, "हेलो भाइयों-बहनों मैं इरफान खाँ। मैं आज आपके साथ हूं भी एवं नहीं भी। खैर, ये मूवी अंग्रेजी मीडियम मेरे लिए काफी खास है। सच में यकीन मानिए मेरी दिली ख्वाहिश थी कि इस मूवी को उतने ही प्यार से प्रमोट करूं, जितने प्यार से हमने इसे बनाया है मगर मेरी बॉडी के अंदर कुछ अनचाहे अतिथि बैठे हुए हैं, उनसे संवाद चल रहा है। देखते हैं कि ऊंट किस करवट बैठता है। जैसा भी होगा आपके लिए इत्तेला कर दी जाएगी" 

फिल्म जगत की सभी हस्तियों ने ट्वीटर पर इरफान खाँ के समय से पूर्व चले जाने पर अफसोस व्यक्त किया। प्रेसिडेंट रामनाथ कोविंद ने भी इरफान के देहांत पर गहरा शोक जाहिर किया है। उन्होंने एक ट्वीट करते हुए कहा,

दोस्तो आपको यह पोस्ट कैसी लगी? आगे भी हम आपको इसी तरह की मोटिवेशनल पोस्ट लेकर आते रहेंगे. इसलिए हमें सोशल मीडिया पर फ़ॉलो करना न भूलें।

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